रविवार, 25 मई 2008

हाँ मुझे मुस्कराहट चाहिए थी: कुछ मेरी डायरी से!

कल फिर से तुझे याद किया मैंने,
कुछ सुहाने लम्हों को निगाहों से गुज़ारा मैंने,
माना के अब गैर हो चुका है तू, मगर क्या करूं,
हाँ मुझे मुस्कराहट चाहिए थी।

वो वक्त भी कुछ और था और वो दौर भी कुछ और था,
के जब साथ बैठते थे हम दोनों,
के नज़दीकियों का आलम था
और धूप में भी बेबाक मौसम था,
हर एक पल को फिर से जिया मैंने,
हाँ मुझे मुस्कराहट चाहिए थी.

मैं जानता हूँ लोग फिर से इल्ज़ाम देंगे मुझे,
फिर से मुझे शर्मिंदा किया जाएगा,
बैठेगे फिर लोग मेरी मज़ाक बनाने के लिए,
क्यों मैंने तुझे याद किया,
मगर उनको क्या पता क्या हाल था मेरा,
हाँ मुझे मुस्कराहट चाहिए थी।

हाँ मुझे पता है वो वक्त लौटके ना आएगा,
हाँ मुझे पता है तू चला गया है तनहा छोड़कर,
वो यादें शायद अब मेरी नही है,
मगर मैं क्या करूं?
के रोने के लिए भी और हँसने के लिए भी
मुझे तेरी ही ज़रूरत है।
मैं तुझसे, तुझे याद रखने का हक मांगता हूँ।
मैं फिर से रोना चाहता हूँ,
मैं फिर से मुस्कुराना चाहता हूँ।

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