शनिवार, 21 जून 2008

क्या गुनाह किया है कोई जो नसीब में बस,तन्हाईयाँ और सिर्फ तन्हाईयाँ ही लिखी है। हाल ऐ दिल!

तन्हाई में जीने की आदत ना थी,

ना खवाहिश कभी चुप रहने की, की,

चाहतें तो घिरे रहने की थीं दूसरों से हमेशा,

पर मुमकिन नहीं कि हो हर सपना पूरा हमेशा।

कभी जो रहते थे दिल क करीब,

आज उन्हें हमारी मौजूदगी भी नागवार गुज़रती है,

बातों में हमारी सौ बुराइयां और बस खामियां ही खामियां दिखती है,

क्या सच में बदल दिया वक़्त ने इतना कुछ कि,

कि हमारी परछाईयाँ भी हम से डरती है।

क्या गुनाह किया है कोई जो नसीब में बस,

तन्हाईयाँ और सिर्फ तन्हाईयाँ ही लिखी है।

निदा अर्शी

1 टिप्पणी:

  1. क्या गुनाह किया है कोई जो नसीब में बस,
    तन्हाईयाँ और सिर्फ तन्हाईयाँ ही लिखी है।

    अच्छी रचना..


    ***राजीव रंजन प्रसाद

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