गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

फिर कोतुहल

बहुत दिनों से कुछ लिखना चाहता हूँ। कुछ पंक्तियाँ लिखता हूँ और फिर झुंझलाहट के साथ उन्हें डिलीट कर देता हूँ। ये समझ ही नही आ रहा है के ऐसा क्यूँ हो रहा है। आजकल लगता है के अपने आपसे ही अजीब सी ज़ंग कर रहा हूँ। इधर ब्लोग्वानी या चिट्ठाजगत पर आता हूँ के कुछ अच्छा सा पढने को मिल जाए मगर ऐसा लगता है के मेरी ही तरह यहाँ भी लोग कुछ असमंजस में दिखाई देते हैं। ये बात मानूंगा के इधर पिछले कुछ दिनों में कुछ अच्छे रचनात्मक ब्लॉग शुरू हुए हैं। जिनका ध्यान कुछ रचनात्मक लिखने का करता है। बाकी दुआ मेरी ये है के वो लोग आगे भी मन लगाकर लिखते रहे और कुछ अच्छा पढने को मिलता रहे। हालाँकि इस दुआ में भी मेरी ही स्वार्थ ज़्यादा है आखिर पढने को तो मुझे ही मिलेगा।
इधर बात मैं कुछ अपनी कर रहा था। ख़ैर जाने दो।
वैसे ये पोस्ट इस बात के लिए ज़्यादा है के किसी तरह फिर से लिखने की आदत पड़ जाए।

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