गुरुवार, 2 जुलाई 2009




ख़बर रखते रहे ज़माने की,और ये याद ना रहा,
कब आखिरी बार मिले थे तुझे।
गुज़र गए अनजाने में,हम उन गलियों से,
जहाँ आखिरी बार मिले थे तुझे।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर भाव प्रस्तुत किया है ............यह बिल्कुल सत्य है कि इंसान को कुछ पता भी नही चलता है और बहुत कुछ लम्हे अंजाने मे जी आता है .........................यह सच सच सच है...........

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  2. वाह बहुत सुन्दर होते हैं यादोम के झरोखे शुभकामनायें

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