गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

यूँ तमाशा सर-ऐ-महफ़िल तो ना दिखाना था। हाल ऐ दिल!

तुम्हे यूँ लौटकर ना आना था,
टूटा हुआ वो ख़्वाब फिर से तो ना दिखाना था,
मैं यूँही सब्र कर चूका था ज़ालिम,
यूँ तमाशा सर-ऐ-महफ़िल तो ना दिखाना था ।

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